Site icon MYLEKHANI

कौन हू में

 

कोई अगर पूछता है,
कौन हो तुम ?
घबड़ा के डायरी,
निकालती हूँ मैं।
अपना नाम उसमें,
ढूँढती हूँ।
स्वयं पता नहीं मुझको
युगों से यही
अपने आप से पूछती हूँ,
कभी राधा, अहल्या,
द्रोपदी और सीता थी
ऐसा लगता है…. ।
यह भ्रष्टाचार,
यह नोच-खसोट दंगे- -फ़साद, बलात्कार,
सरहदों पर बिछती लाशें…
देख… नहीं पाती,
सुनना भी मुश्किल
लगता है मुझे।
आँखों पर पट्टी बाँध लू
गान्धारी बन जाऊँ ।
ग्रंथों वाली गान्धारी
पतिव्रता होने के नाते
आँखें होते हुए भी
सूरदास बनी रही।
मैं ऐसी सामाजिक विषमताओ
को देख कर,
आँखों पर पट्टी बाँधे
जीना चाह रही।
हाँ… हाँ याद आया
मैं गान्धारी ही हूँ।
कई सदियों पहले
मेरे दृष्टिकोण वाली गान्धारी
महाभारत ग्रंथ से,
अलग है।
पांडव पुत्र, सत्य की राह पर
चलने वाले…
असंख्य कौरवों से.
सत्य पर जीने की
सजाएँ भोग रहे थे।
उससे यह अन्याय
नहीं देखा गया होगा,
सो उसने आँखों पर
पट्टी बाँध ली होगी।
मुझे अपने जैसी
वही गान्धारी लगती है…।
इस लिए बार-बार
मैं आज का,
दिया हुआ नाम
भूल-भूल जाती हूँ,
डायरी से दिखाती हैं।
ऐसे अन्याय ।
‘गान्धारी’… यही .
चिरपरिचित नाम है मेरा… ।
Exit mobile version