हम बेचारे

टी.वी. के छोटे पर्देपर
घर-घर में जो अनिवार्य है।
जहाँ अभी तक.
भाई-बहन, माता-पिता,
दादा-दादी, से भरे हुए घर हैं।
सास ससुर, देवर ननद
बाल-बचोंवाले, घर भी,
अभी तक मौजूद हैं।
स्त्री का कैसा रूप
दिखाया जा रहा है ?
गहनों से लदी हुई।
चमकीले, भडकीले वस्त्र
कुछ भगवान बनी हुई स्त्रियाँ,
कुछ, शैतानी शरारत से भरपूर
खतरनाक इरादे,
खौफनाक हाव-भाव,
भद्दी बातें
या युवा लड़कियाँ नम्र,
भद्दे इशारे करती हुई.
ये कौन सी सभ्यता
घुस आयी है।
चुपके-चुपके दबे पाँव,
पता ही न चला।
घर-घर में रखा हुआ,
डब्बा नुमा, टी. वी,
देखते-देखते ऐसे रंग दिखायेगा ?
माथा चकराने, लगता है.
जी घबराने लगता है।
खुले आम शादी शुदा औरतों
व्याहता पुरषों
के गैरों से संबंध
एक पुरुष, दो बीवियां,
समझौता करना,
भारतीय संस्कार क्या हैं ?
ये लोग, क्या दिखा रहें ?
सिनेमा पर तो
अपनी इच्छा से जा सकते हैं,
इस घर में घुसी शैतान की,
डिबिया को क्या करें ?
घर की औरतें दफ्तर अथवा
काम-काज के लिए चली जाती हैं।
बच्चे… नौकरानियों के
बदबूदार गोद में
अंगूठा चूसते हुए आँखें फाड़े
भीत विस्मित डरे-सहमे
टुकर-टुकर देखते रहते
सोचते, ये कौन सा विश्व है ?
चटखारे लेते हुए हम…
घर-घर में
चीर हरण का –
दृश्य देखते रहते,
हम कितने मजबूर
वेबस, बेचारे हैं।
हैं ना इन्दु????